समकालीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ | Samkalin Kavita ki Pramukh Pravrittiyan aur Visheshtaen

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समकालीन कविता का प्रवर्तन डॉ.विशंभरनाथ उपाध्याय ने 1976 ई. में अपनी पुस्तक ‘समकालीन कविता की भूमिका’ से किया । इसमें जहाँ एक ओर अकवितावादी कवियों को स्थान दिया गया है, वहीं दूसरी ओर ‘संघर्षमूलक कविता’ तथा ‘विचार कविता’ के कवियों को भी सम्मिलित कर लिया गया है । इस स्थिति को देखते हुए ‘समकालीन कविता’ को किसी अलग आंदोलन की पहचान देने की अपेक्षा उसे हिंदी के सभी सठोत्तरी आंदोलन का समुच्चय मानना अधिक उपयुक्त होगा ।

कतिपय आलोचक ‘समकालीन कविता’ को ‘अकविता’ तथा ‘वाम कविता’ से अलग मानते हुए ‘विचार कविता’ से सम्बद्ध करते हैं ।

‘समकालीन’ शब्द अंग्रेजी के ‘contemporary’ का पर्याय है तथा ‘समसामयिक’ का अर्थ बोधक है । इससे प्रतीत होता है कि समकालीन कविता समसामयिक संदर्भों से संबद्ध है । साथ ही, इसे युग-विशेष के संदर्भों के अनुसार बदली हुई चेतना या मानसिकता का द्योतक माना जाता है ।

‘समकालीन कविता’ में वर्तमान का सीधा खुलासा है । इसे पढ़कर वर्तमानकाल का यथार्थबोध हो सकता है, क्योंकि इसमें जीते, संघर्ष करते, लड़ते, बौखलाए, तड़पते-गरजते तथा ठोकर खाकर सोचते वास्तविक आदमी का परिदृश्य है ।

आज की कविता में काल अपने गत्यात्मक रूप में है । यह किसी ‘कालक्षण’ की कविता नहीं ‘कालप्रवाह’ की कविता है । इसमें असंतोष, रोष एवं विद्रोह का विस्फोट है ।

समकालीन सृजन की उपलब्धियों में – रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, धूमिल, मलयज, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर, कुँवर नारायण, गिरिजाकुमार माथुर, विनोद कुमार शुक्ल, अशोक वाजपेयी, केदारनाथ सिंह, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदारनाथ अग्रवाल, लक्ष्मीकांत वर्मा आदि के काव्य-सृजन को लिया जा सकता है ।

समकालीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ 

समकालीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों और विशेषताओं का विश्लेषण व अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है:

समाज का जटिल यथार्थ

समकालीन कविता के प्रायः सभी महत्वपूर्ण कवियों ने समय-समाज की चुनौतियों से उपजी बौद्धिक चिंताओं का सृजनशीलता से सीधा रिश्ता कायम किया। समय और समाज के जटिल यथार्थ को उजागर करने के लिए इन सभी काव्य-धाराओं, काव्य-आंदोलनों, काव्य-प्रवृत्तियों के कवियों ने अपनी गहरी सामाजिक-सांस्कृतिक जागरूकता का एहसास कराया। जीवन-जगत के व्यापक प्रश्नों को उठाने के कारण इस काव्यभूमि की अर्थ-चेतना का विस्तार हुआ है ।

व्यापक अंतर्वस्तु

समकालीन काव्य की अंतर्वस्तु अत्यंत व्यापक है । इतनी व्यापक है कि पूरे देश की जनता के दु:खते-कसकते अनुभव इस सृजन में व्याप्त है। देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक-नैतिक सभी समस्याओं-प्रश्नाकुलताओं को इन रचनाकारों ने निर्भय भाव अभिव्यक्त किया है।

स्वाधीन भारत का काला इतिहास

नेता, सांसद, समाजवाद और स्वतन्त्रता पर समकालीन कविता ने जो स्वर अपनाया है वह स्वाधीन भारत का काला इतिहास है । कौए, गिद्ध, गुबरैले, भेड़िए, तेंदुए, सांड, शेर इत्यादि इस कविता में पाशविक ताकतों की रक्तखोर मानसिकता को सामने लाते हैं ।

जन-संघर्ष की चेतना

समकालीन कविता का कथ्य जन-संघर्ष की चेतना को अनेक रूपों-स्तरों से सीधे-सीधे अभिव्यक्ति देता है। सन् 60 के बाद की मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अवसरवादिता, चरित्रहीनता, काला-परिवेश या आपातकाल की बर्बरता, काले-काले अध्यादेश, नागार्जुन से लेकर धूमिल तक को गुस्से से भर देते हैं ।

व्यक्ति के मोहभंग का साहित्य

नयी कविता मोहभंग की कविता है पर समकालीन कविता मोहभंग की कविता नहीं है । वह आत्म-चित्कार और व्यक्ति के मोहभंग का साहित्य है । समकालीन कविता बुनियादी तौर पर कटु स्थिति-परिस्थिति की सच्चाई का साक्षात्कार है । इस सच्चाई की ईमानदार अनुभूतियाँ हाड़-फोड़ दर्द से निकलकर रचना में आई है ।

व्यापक वैचारिक परिप्रेक्ष्य

समकालीन कविता के काल में नए ढंग के नव्य साम्राज्यवाद, नव्यपूंजीवाद, नव्य उपनिवेशवाद, उत्तर आधुनिकतावाद का दबदबा है । 

समकालीन कविता पर नवमानवतावाद का लगभग वैचारिक कब्जा है। फलत: समकालीन कविता

में ‘अकविता’ ही क्यों न हो उसमें आधुनिकतावादी, कलावादी, भाववादी, विचारधाराएँ पस्त और बेदम है ।

कविता और राजनीति का घनिष्ठ रिश्ता

कविता और राजनीति घनिष्ठ रिश्ता समकालीन कविता में काफी गरम है । इतना गरम कि पिछले तीन दशकों से कविता और राजनीति के संबंध की चर्चा रही है ।

राजनीति ही जीवन-यथार्थ, जीवन-प्रक्रिया की सच्चाई, ढोंग, झूठ, पाखंड को तय करती है ।

रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर, साही, धूमिल से लेकर उदय प्रकाश तक का सृजन-कर्म एक व्यापक अर्थ में राजनीति से जुड़ा रहा है ।

विभिन्न काव्य प्रवृत्तियाँ

समकालीन कविता रेटोरिक से लेकर वैचारिक खुलेपन तक दौड़ लगाती है । जो चीज इस कविता में विशिष्ट दिखाई देती है वह है संघर्ष कि ईमानदारी, यथार्थ की तार-तार स्थिति, नाटकीय और फंतासी का अन्तःसंश्लिष्ट विधान है ।

ये सभी काव्य प्रवृत्ति के रूप में यहाँ सक्रिय हैं । अतः युवा-विद्रोह के अनेक रूप समकालीन कविता में मिलते हैं।

जटिलताओं-यंत्रणाओं की कविता  

समकालीन कविता जीवन-जगत की जटिलताओं-यंत्रणाओं की कविता है । युवा कविता, कविता की परंपरा में, साथ ही विचार की परंपरा में भी अविश्वास प्रकट करती है और अपने समसामयिक दबाओं को कविता के लिए चुनौती मानती है । कविता की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित करने की मांग इसी दबाव का फल है ।  

कविता के नए प्रतिमान

समकालीन कविता सभी पुरानी सौंदर्याभिरुचियों पर प्रहार करती है । लोकतन्त्र-प्रजातन्त्र के सभी मूल्य यहाँ मूल्यहिन हो गए हैं । उपभोक्तावादी संस्कृतियों की विकृतियों से यह कविता पटी पड़ी है।

जन-पक्षधरता और जन-विश्वास की कविता

विरोध-विद्रोह, आक्रोश,विद्रूपता, क्रांति को प्रमुख स्थान देने वाली समकालीन कविता अनास्थावादी दिखाई देने के बावजूद जन-सामान्य के अखण्ड-विश्वास की नींव पर टिकी सास्थावादी कविता है । समकालीन कविता के सभी प्रतिबद्ध कवियों ने जन-पक्षधरता के साथ जीवन-विश्वास की कविता लिखी है ।

जीवन-शक्ति का सौंदर्य

समकालीन कविता जीवन के आत्म-विस्तार और जीवन-विवेक के सौन्दर्य को खुलेपन से स्वीकार करती है ।

उगता सूर्य, गीत गाते बच्चे, खिले कमाल, किरण-दल इस सृजन में बहुत मिलते हैं । प्रार्थना की मुद्रा में कवि जीवन-शक्ति का सौन्दर्य मांगता है ।

कबीर के प्रति असीम आस्था

समकालीन कविता के नए-पुराने दोनों तरह के कवियों के मन में कबीर के प्रति असीम आस्था का भाव है । कबीर से प्रेरणा ग्रहण करने का अर्थ है – सामाजिक विकृतियों, भ्रष्टाचार के नायकों को ललकारने का साहस ।

व्यंग्य की प्रधानता

समकालीन काव्य-सृजन में लोकतन्त्र की असफल-अराजक और दिशाहीन स्थिति के कारण व्यंग्य की भरमार है ।

सत्ता हथियाने के खेल में न कोई मूल्य है न कोई आदर्श। पूरा देश राजनेताओं -व्यापारियों के दल-दल में फंसा हुआ है ।

इसी परिवेश ने क्रोध में सशस्र क्रांति, गुरिल्ला विद्रोह,नक्सलपंथ आदि की धारणाओं को आगे बढ़ाया है ।

इस आक्रामक लेखन की रूढ़ियाँ कुछ इस तरह बनी हैं, जिसमें मृत्यु, संभोग, रति, स्टैन, जांघें, अकेलापन जैसे शब्द इतने पीटे गए कि उनका अर्थ समाप्त हो गया है ।

स्त्री-पुरुष संबंध की कल्पना अधूरी-अधकचरी है, जिसमें भूख का अर्थ केवल सेक्स है ।

निष्कर्ष

समकालीन कविता वह कविता है जो 20वीं सदी के उत्तरार्ध से लेकर वर्तमान समय तक लिखी जाती है। यह कविता बदलते सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी परिवेश के साथ निरंतर रूप में विकसित हो रही है। इसमें व्यक्ति की जटिलता, सामाजिक असमानताएँ, विस्थापन, आधुनिक जीवन की विडंबनाएँ और मानवीय संवेदनाएँ विशेष रूप से उभरकर आती हैं।

समकालीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

व्यक्ति-केन्द्रितता और आत्मान्वेषण

  • व्यक्तिगत अनुभव, भावनाएँ, अकेलापन, संघर्ष और मनोवैज्ञानिक द्वंद्व पर जोर।
  • व्यक्ति समाज के दबावों में खुद को खोजने की कोशिश करता है।

सामाजिक–राजनीतिक चेतना

  • भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, पूँजीवाद, बेरोज़गारी, शोषण और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों पर तीखा प्रहार।
  • आम आदमी की समस्याएँ कविता के केंद्र में।

स्त्री-विमर्श और लैंगिक समानता

  • स्त्री की स्वतंत्रता, पहचान, यौनिकता, हिंसा, दमन और समानता पर सशक्त स्वर।
  • पितृसत्ता की आलोचना और स्त्री-अनुभवों का निर्भीक प्रस्तुतीकरण।

दलित और आदिवासी चेतना

  • दलित व आदिवासी अनुभवों का प्रत्यक्ष व प्रामाणिक चित्रण।
  • सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न और अस्मिता की लड़ाई को केंद्र में रखा जाता है।

विस्थापन और प्रवास की अनुभूति

  • शहरों की ओर पलायन, बेघरपन, नौकरी की अस्थिरता, प्रवासी जीवन की पीड़ा।
  • गाँव–शहर का टकराव और बदलती संस्कृति अभिव्यक्त होती है।

तकनीकी और डिजिटल जीवन की उपस्थिति

  • मोबाइल, सोशल मीडिया, इंटरनेट, मशीनों का जीवन पर प्रभाव।
  • डिजिटल युग की अलगाव भावना और संबंधों की कृत्रिमता उभरती है।

पर्यावरण और प्रकृति चेतना

  • प्रकृति का विनाश, जलवायु संकट, प्रदूषण, और पर्यावरणीय असंतुलन पर चिंता।
  • मानव–प्रकृति संबंधों की पुनर्समीक्षा।

भाषा की सहजता और बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग

  • मुहावरेदार, सरल, सीधी, संवादात्मक भाषा का प्रयोग।
  • जटिल अलंकारों की जगह सहज अभिव्यक्ति।

प्रयोगशीलता

  • नए विषय, नई शैली, मुक्त छंद, ध्वनियों–प्रतीकों का प्रयोग।
  • परंपरागत काव्य-रूपों की सीमाएँ टूटती हैं।

समकालीन कविता की प्रमुख विशेषताएँ

मुक्त छंद का प्रयोग

  • समकालीन कविता का अधिकांश भाग छंदमुक्त है।
  • भाषा स्वाभाविक, लयात्मक और गद्यात्मक होती है।

यथार्थपरक दृष्टि

  • समाज का सजीव, तीखा और वस्तुनिष्ठ चित्रण।
  • यथार्थ की पीड़ा, संघर्ष, विसंगतियों को निर्भीकता से व्यक्त किया जाता है।

संवेदनशीलता और सहानुभूति

  • हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज़ को महत्व।
  • मानवीय करुणा और संवेदना का गहरा संलयन।

प्रतीकात्मकता और प्रतीकों का विस्तार

रोज़मर्रा की चीजें भी गहरे अर्थों का रूप ले लेती हैं—पेड़, सड़क, बारिश, दीवार आदि।

भाषा में विविधता

  • स्थानीय बोलियों, क्षेत्रीय भाषाओं, लोक–शब्दों का प्रयोग बढ़ा है।
  • भाषा अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी।

प्रश्नाकुलता और प्रतिरोध

  • सत्ता, व्यवस्था, सामाजिक ढांचे और मान्यताओं पर प्रश्नचिह्न।
  • कविता प्रतिरोध का माध्यम बनती है।

निजी और सामाजिक जीवन का मिश्रण

प्रेम, परिवार, संबंध जैसे निजी विषय भी व्यापक सामाजिक संदर्भों से जुड़े दिखाई देते हैं।

समकालीन कविता निरंतर बदलती दुनिया की कविता है—यह समाज, राजनीति, तकनीक और मानवीय संबंधों के नए-नए पहलुओं को समेटती है। इसमें यथार्थ का साहसिक प्रस्तुतिकरण, मानव-केन्द्रित संवेदनाएँ, सामाजिक चेतना, और भाषाई नवाचार प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं।

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