मिथक | मिथक क्या है | Mithak | Mithak Kya Hai | Myth | Myth Kya hai

  मिथक शब्द अंग्रेजी के मिथ’ (Myth) और ग्रीक शब्द माइथोस’ शब्द पर आधारित है। मिथ’ (Myth) का प्रयोग कल्पित कथा’ या पौराणिक कथा’ के लिए किया जाता है। 

मिथक | मिथक क्या है | Mithak | Mithak Kya Hai | Myth | Myth Kya hai

अरस्तू ने अपने ग्रन्थ पोयटिक्समें मिथक शब्द का प्रयोग मनगढ़ंत कथाके लिए किया है। मिथक परम्परागत अनुश्रुत (परंपरा से प्राप्त ज्ञान) कथा है जो किसी अतिमानवीय प्राणी या घटना से सम्बन्धित होती है, जो बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लिया जाता है।

 

 हिंदी में इस शब्द का पहला प्रयोग आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने किया। मिथ’ का मूल ग्रीक भाषा का शब्द मुथॉस है जिसका अर्थ वाणी का विषयहै।

वाणी का विषय से तात्पर्य है, एक कहानी एक आख्यान (वर्णन, वृतांत, कथा), जो प्राचीन काल में सत्य माने जाते थे और कुछ रहस्यमय अर्थ देते थे।

लेटिन भाषा में यह शब्द मिथास है, जिसका अर्थ है – शब्द-कथा या कहानी।

 इस प्रकार मिथक ऐसे आख्यान (वर्णन, वृतांत, कथा) को कहते है, जिसमें कोई तार्किक संगति न हो। इसके लिए दन्तकथा’, ‘पुरावृत्त’, ‘पुराकथा जैसे कई शब्द प्रयुक्त होते हैं।

{पुराकथा = इतिहास, पुरानी कहानी, पुरावृत्त = प्राचीन युग का वृतांत या वर्णन)

 मिथक का अर्थ

मिथक की व्युत्पत्ति यूनानी भाषा के माइथोस या मुथॉस शब्द से मानी जाती है। इसका अर्थ है – मौखिक कथा अर्थात् ऐसा आख्यान (वर्णन, वृतांत, कथा) जिसमें कोई तर्क न हो ।

फ्रेंच शब्दकोश के अनुसार मिथ का अर्थ है – जिसका यथार्थत: अस्तित्व नहीं है। मिथ शब्द के कुछ अन्य कोशगत अर्थ (dictionary meaning) निम्न हैं :

  • (क)  कोई पुरानी कहानी अथवा लोक-विश्वास,
  • (ख)  किसी जाति का आख्यान (वर्णन, वृतांत, कथा),
  • (ग)   धार्मिक विश्वासों एवं प्रकृति के रहस्यों के विश्लेषण से युक्त देवताओं तथा वीर पुरुषों की पारंपरिक गाथा,
  • (घ)   कथन,
  • (ङ)   वृत्त (इतिहास, वृतांत आदि),
  • (च)   किवदंती (जनश्रुति, ऐसी बात जिसे परंपरा से सुनते चले आए हों),
  • (छ)  परंपरागत कथा आदि। 

मिथक की व्याख्या

वस्तुतः मिथक का संबंधी आदिम लोक मानस से है। अपनी सरलतम परिभाषा में “मिथक एक कथा है, जिसमें सृष्टि और उसके उपकरणों के उद्भव, उसकी गतिक्रिया और उस पर नियंत्रण, उसके अबूझ व्यापार, मूलभूत मानवीय क्रियाओं और समस्याओं, प्रतिरूपों और तत्त्वों, जीवन-मरण आदि विहंगम विषयों को लेकर आरंभ कालीन धारणाएं, चिंताएं, विश्वास और तत्संबंधी कर्मकांड को अभिव्यक्ति मिली है।”

मिथक में आदिम विज्ञान, धर्म, दर्शन, कर्मकांड सभी संयुक्त रूप में विद्यमान हैं। संक्षेप में मिथक को आदिम मनुष्यों के मानसिक, भौतिक जीवन का प्रतीकात्मक कथासंग्रह कह सकते हैं।

डॉ. नगेंद्र ने मिथक को परिभाषित करते हुए लिखा है- “सामान्य रूप से मिथक का अर्थ है ऐसी परंपरागत कथा, जिसका संबंध अतिप्राकृत (अलौकिक) घटनाओं और भावों से होता है। मिथक मूलतः आदिम मानव के समष्टि-मन की सृष्टि है, जिसमें चेतन की अपेक्षा अचेतन प्रक्रिया का प्राधान्य होता है।”

 मिथक के उद्भव को लेकर विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न संभावनाएं सामने रखी हैं। आदिम मानव, प्रकृति की शक्तियों तथा व्यापारों के रहस्यों को पूरी तरह समझने-समझाने में असमर्थ होने के कारण अपनी कल्पना के माध्यम से उन्हें देवी-देवताओं तथा अन्य अतिमानवीय शक्तियों का रूप दे देता था।

आरंभिक मनुष्य की ये कल्पित अतिमानवीय शक्तियां कालांतर में मिथक बनकर उभरी। इस प्रकार धार्मिक विश्वास तथा मिथक में अटूट संबंध है।

धार्मिक विधि-विधान से जुड़े आख्यानों (वर्णन, वृत्तान्त, कथा) ने भी मिथकों का रूप ले लिया। इनके पीछे उन रहस्यमयी शक्तियों को तुष्ट करके विपत्तियों से जन-समाज की रक्षा करने की भावना प्रमुख थी। भारत के हिंदू समाज में ही विभिन्न व्रतों की कथाओं में इस तथ्य का परिचय मिल जायेगा।

अपनी आवश्यकता तथा स्थिति के अनुसार मनुष्य इन मिथकों को रूप भी देता रहा है और इनके माध्यम से सृष्टि के रहस्यों की व्याख्या भी करता रहा है।

मिथक की विशेषताएँ

मिथक की निम्न विशेषताएं मानी गई हैं :
(1) यह लोक प्रसिद्ध मनगढ़ंत या पौराणिक कथा होती है।

(2) इसमें अतिमानवीय (अलौकिक) प्राणी या घटना का उल्लेख होता है ।

(3) इसकी घटनाएं बिना तर्क के स्वीकार कर ली जाती हैं।

(4) इसमें विस्मयपूर्ण एवं कौतूहलपूर्ण घटनाएं होती हैं।

(5) वह अनेक आद्य (आदि, मूल) बिम्बों का गुच्छ होता है।

(6) मिथक के क्रियाकलाप और कथा मानवेतर विशेषतः देवताओं से सम्बन्धित होते हैं।

(7) वह लोक विश्वास पर आधारित होता है।

8) मिथक बुद्धिमूलक न होकर सामूहिक अचेतन मन से सम्बद्ध हैं। 

 मिथक और साहित्य 


मिथक को साहित्य की एक महत्वपूर्ण टेकनीक माना गया है जिसके माध्यम से अचेतन को प्रकाश में लाया जाता है, तथा अनुभूति
को प्रत्यक्ष करने में सहायता मिलती है।

जयशंकर प्रसाद की कामायनी’, धर्मवीर भारती का अन्धा युग, नरेश मेहता की संशय की एक रात मिथक पर आधारित ऐसी कृतियां हैं जिनमें आधुनिक भाव बोध को अभिव्यक्त किया गया है।

डॉ.एस.एस.गुप्त के अनुसार, “कविता में मिथकों का प्रयोग सायास नहीं, स्वाभाविक रूप से होना चाहिए। उन्हें काव्य का अभिन्न अंग होना चाहिए और उन्हें कवि की दृष्टि से जुड़ा होना चाहिए। ये गुण आने पर ही मिथक  कलात्मक बन पाएंगे।”

समकालीन यथार्थ उद्घाटित करने के लिए साहित्य में मिथकों का प्रयोग होता है। हिंदी में भगवान राम और भगवान कृष्ण दो ऐसे मिथकीय चरित्र हैं  जिनका हर युग में कवियों ने अपनी तरह से चित्रण करने की कोशिश की है।

तुलसीदास के राम और निराला के राम में अन्तर है। इन दोनों बड़े कवियों ने अपने समय का सच कहने के लिए भगवान राम के चरित्र का अपनी तरह से इस्तेमाल किया है।

इसी तरह भगवान कृष्ण का भी आधुनिक हिंदी कविता में अलग-अलग संदर्भों में चित्रण हुआ है। धर्मवीर भारती ने अपने चर्चित काव्यात्मक नाटक अन्धा युग में कृष्ण के साथ महाभारत युग के और भी कई मिथकीय पात्रों का चित्रण अपने समय के संकट को दिखाने के लिए किया है। मिथकीय प्रयोगों के कारण अन्धा युग आधुनिक मानव की नियति का प्रतीक बन जाता है।

 निष्कर्ष 

मिथक का जन्म मानव के सामाजिक जीवन के क्रियाकलापों, प्रथाओं, रीति-रिवाजों, घटनाओं या अन्य किसी तथ्य के रहस्योद्घाटन के उद्देश्य से हुआ। इसे कुछ लोगों ने सृष्टि के रहस्योद्घाटन से सम्बन्धित कथा मात्र माना।
मिथक सृष्टि एवं मानव की उत्पत्ति की कल्पनामण्डित सत्य-गाथा है। आदिम मानव ने प्राकृतिक रहस्यों को अभिव्यक्त करने के लिए मिथकों का निर्माण किया था। इसी कारण मिथक आद्य (आदि मूल) प्रतीकों का समूह कहलाया।
मिथक का धर्म के साथ निकट सम्बन्ध है। इसी कारण कुछ विद्वानों ने इसे धर्मगाथा कहा है। धार्मिक अनुष्ठान एवं संस्कार मिथक के क्रियात्मक रूप एवं व्यावहारिक फलक हैं।
मिथक बनने में लोक-विश्वास सहायक होता है। दूसरी तरफ मिथक लोक संस्कार के रूप में भी देखे जाते हैं। कई बार मिथक प्रतीक भी बन जाते हैं। जैसे भारतीय समाज में रावण बुराई का और विभीषण घर के भेदी का प्रतीक माना जाता है। इसी तरह राम और सीता क्रमश: आदर्श पुरुष और आदर्श स्त्री के प्रतीक के रूप में देखे जाते हैं। 

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