‘शैली’ मूल लातानी (लैटिन) शब्द ‘स्तिलुस’ (stylus) से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है ‘कलम’। उसी के अर्थ का विस्तार हुआ है – कलम की प्रयोग विधि, लेखन की विधि, अभिव्यक्ति की विधि । तो आइए अब विस्तार से shaili vigyan को समझने का प्रयास करते हैं ।
काव्यशास्त्र के विद्वान्, रस मर्मज्ञ डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, ‘शील’ शब्द में ‘अण् प्रत्यय के योग से शैली शब्द बना है। अतः शैली के मूल में शील’ शब्द है। शील का अर्थ है स्वभाव ।
जब साहित्य का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन साहित्य के कलात्मक मर्म (गूढ़ अर्थ, स्वरूप) को समझने तथा उसके भाषिक सौन्दर्य का अनुसंधान करने के लिए किया जाता है तब वह शैली-वैज्ञानिक अध्ययन बन जाता है । शैली-विज्ञान का संबंध एक ओर साहित्यशास्त्र से है और दूसरी ओर भाषा-विज्ञान से ।
डॉ. भोला नाथ तिवारी के विचार से, “शैली के वैज्ञानिक अध्ययन को शैली विज्ञान कहते हैं।”
चेस्टरफील्ड का कथन है कि, “विचारों के परिधान को शैली कहते हैं।”
“Style is the dress of thoughts.”
शैली विज्ञान का प्रादुर्भाव
यद्यपि shaili vigyan को पश्चिम से आयातित माना गया है किन्तु भारतीय काव्यशास्त्र में भी अत्यन्त प्राचीन काल से भाषा तत्त्व पर बल रहा है।
आचार्य वामन ने ‘विशिष्ट पदरचना’ को ‘रीति’ नाम देते हुए उसे काव्य की आत्मा माना था तो आचार्य भामह ने ‘असामान्य कथन’ या ‘वक्रोक्ति’ को।
आचार्य कुंतक कवि-स्वभाव, कवि-प्रतिभा आदि पर बल देते हुए काव्य की अनुभूति या सन्देश पक्ष के साथ ही उसकी अभिव्यक्ति को भी महत्त्व देते हैं। वे कविता की भाषा तथा सामान्य भाषा का अन्तर दिखलाते हुए वक्रता को काव्यभाषा का अनिवार्य गुण मानते हैं और साहित्य के सृजन में भाषा के स्वरूप के महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
इस प्रकार भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य तथा उसकी भाषा शैली के अनिवार्य सम्बन्ध को स्वीकार किया गया है और भाषा शैली के विविध पक्षों के विवेचन पर ध्यान रखा गया है।
विधिवत रूप से शैलीविज्ञान का प्रादुर्भाव बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में स्वीट्ज़रलैंड के जेनेवा स्कूल के सुविख्यात विद्वान चार्ल्स बेली द्वारा हुआ। बेली ने भाषा के अभिव्यंजक पक्ष (विचारों और भावों को प्रकट करना) और उसकी प्रक्रिया के अध्ययन को शैलीविज्ञान कहा है।
शैली वैज्ञानिक समीक्षा या आलोचना
‘भाषिक संरचना’ के आधार पर किसी कृति की जो समीक्षा की जाती है, उसे ही शैली वैज्ञानिक समीक्षा या आलोचना कहते हैं। भाषिक संरचनाओं ने काव्य-सर्जना को प्रभावित किया है। विलियम वर्ड्सवर्थ के भाषा-सम्बन्धी सिद्धान्तों ने स्वच्छन्दतावादी युग की कविताओं को प्रभावित किया तो आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के काव्य भाषा सम्बन्धी विचारों ने द्विवेदी युग की कविताओं को प्रभावित किया। भारतेन्दुयुग में खड़ी बोली की जो स्थिति थी उसने उस समय कविता को प्रभावित किया। तात्पर्य यह है कि कविता और भाषा का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।
शैली वैज्ञानिक समीक्षक यह मानते हैं कि कविता के संगठन में केन्द्रीय स्थिति भाषा प्रयोग की ही रहती है। अतः कविता का अध्ययन वास्तव में भाषा-शैली का ही अध्ययन है।
भाषा-शैली के अध्ययन से तात्पर्य – काव्य में प्रयुक्त शब्दों की ध्वनि और संरचना, बलाघात, बिम्ब, प्रतीक, पदविन्यास, वाक्यरचना, शब्दों के अर्थ परिवर्तन, शब्दों की व्युत्पत्ति आदि का अध्ययन। शैली वैज्ञानिक आलोचना में उक्त भाषिक संरचना के आधार पर ही किसी रचना का मूल्यांकन किया जाता है।
शैली तथा रीति
‘रीति’ शब्द को कुछ लोग ‘शैली’ का पर्यायवाची मानते हैं। इन लोगों के अनुसार रीति और शैली समानार्थी हैं।
वस्तुतः ‘रीति’ शब्द संस्कृत साहित्य का है, जब कि ‘शैली’ पाश्चात्य ‘Style’ शब्द का हिंदी रूपान्तर है। यद्यपि दोनों शब्द पृथक-पृथक परपराओं के है, परन्तु रीति और शैली अर्थ की दृष्टि से बहुत कुछ समीप माने जाते हैं और कभी- कभी इनका प्रयोग पर्यायवाची रूप में भी होता है। रीति का मूल अर्थ ‘संघटना’ है। रीति प्रायः विषयगत होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि रीति और शैली शब्दों में बहुत कुछ समानार्थकता है।
शैली विज्ञान का स्वरूप
शैली विज्ञान के स्वरूप निर्धारण निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है :
1. शैली विज्ञान साहित्य का अध्ययन है।
2. शैली विज्ञान साहित्यिक भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन है।
3. शैली विज्ञान साहित्य का विज्ञान है।
4. शैली विज्ञान भाषा विज्ञान की वह शाखा है, जिसका क्षेत्र साहित्य है।
5. शैली विज्ञान समीक्षा का वह नवीन आयाम है, जो साहित्य का अध्ययन भाषा विज्ञान के सिद्धान्तों और प्रविधि के आधार पर करता है।
शैली विज्ञान की प्रकार्यगत (Functional) विशेषताएँ
Shaili Vigyan की प्रकार्यगत विशेषताएँ निम्नानुसार हैं :
1. कृति की स्वायत्तता – शैली विज्ञान कृति को स्वायत्त (जिस पर स्वयं का अधिकार हो) घोषित करता है तथा इसी दृष्टि से कृति के कथ्य का उद्घाटन तथा मूल्यांकन करता है।
2. वस्तुनिष्ठता एवं वैज्ञानिकता- शैली विज्ञान, साहित्यालोचन की वस्तुनिष्ठ (वस्तुगत objective) प्रणाली है। अतः अपने विश्लेषण कार्य को वैज्ञानिकता प्रदान करने के लिए भाषा वैज्ञानिक, शैली आधारित एवं साहित्य अवधारणा मूलक विविध प्रतिमानों का आधार ग्रहणा करता है।
3. विश्लेषणात्मकता – शैली विज्ञान, कृति की विश्लेषण प्रक्रिया प्रस्तुत करता है। उस प्रक्रिया में यह भाषा के माध्यम ग्रहण करता है तथा कृति के बाह्य संरचना के माध्यम से गहन संरचना को उद्घाटित करता है।
4. भाषा माध्यमिक दृष्टिकोण – शैली विज्ञान आलोचना का भाषा माध्यमिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इस दृष्टि से भाषा के अवयव, ध्वनि, शब्द, रूप, वाक्य, अर्थ और प्रोक्ति (DISCOURSE) को विश्लेषण के उपकरण के रूप में प्रस्तुत करता है।
5. साहित्यालोचन का सिद्धान्त – शैली विज्ञान एक स्वतंत्र ज्ञानानुशासन होने के साथ-साथ साहित्यालोचन की सैद्धांतिकी प्रस्तुत करता है।
6. साहित्यालोचन की प्रणाली – शैली विज्ञान जहाँ सैद्धांतिकी निर्भर प्रतिमानों (मॉडलों) की संरचना प्रस्तुत करता है, वहाँ विश्लेषण की प्रक्रिया में वस्तुनिष्ठ प्रणाली का कार्य भी सम्पन्न करता है ।
7. सौन्दर्य – उन्मीलकता – शैली विज्ञान कृति के कथ्य-विश्लेषण के साथ-साथ कृति के सौंदर्यात्मक पक्ष को खंडित नहीं करता। वह रचना के सौन्दर्य की शल्य-चिकित्सा नहीं करता, उसे अपनी विश्लेषण प्रक्रिया द्वारा संश्लिष्ट रूप में उन्मीलित (स्पष्ट) करता है।
8. विश्लेषण की क्षमता और संभावनाएँ – शैली विज्ञान की प्रकार्यात्मक उपलब्धियाँ असंदिग्ध हैं। इन्हीं के परिप्रेक्षय में इस ज्ञानानुशासन की क्षमता एवं संभावनाओं का काव्यगत स्तर उजागर होता है । वस्तुत: शैली विज्ञान कृति के सौंदर्यात्मक कथ्य को खंडित रूप में विश्लेषित नहीं करता, अपितु इस विश्लेषणात्मक प्रक्रिया में पाठ की अन्विति (परस्पर संबद्धता) को ध्यान में रखते हुए अपने विश्लेषण का संश्लेष (विचारों का संबद्ध रूप) भी अपेक्षित रूप में प्रस्तुत करता है ।
शैली विज्ञान की शाखाएँ
डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार भाषा विज्ञान के आधार पर भाषा की पाँच इकाइयाँ मानी गयी हैं – वर्ण या ध्वनि, शब्द, रूप, वाक्य और अर्थ।
इन्हीं इकाइयों के आधार पर शैली विज्ञान की भी पाँच शाखाएँ मानी जाती है
(क) वर्ण या ध्वनि शैली विज्ञान
(ख) शब्द शैली विज्ञान
(ग) रूप शैली विज्ञान
(घ) वाक्य शैली विज्ञान
(इ) अर्थ शैली विज्ञान
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शैली वैज्ञानिक किसी कविता का अध्ययन वर्ण (ध्वनि), शब्द, रूप, वाक्य और अर्थ के आधार पर करता है।
1. वर्ण या ध्वनि शैली विज्ञान – कवि अपनी कविता को संगीतात्मक बनाने के लिए वर्ण संगीत का सहारा लेता है।
जैसे निराला की काव्य पंक्तियाँ – “कण-कण कर कंकण प्रिय किण किण रव किंकिणी।” शैली वैज्ञानिक वर्ण के आधार पर कविता के मर्म का विश्लेषण करता है।
2. शब्द शैली विज्ञान – काव्य में शब्दों का प्रयोग विशिष्ट रूपों में होता है। कवि प्रसंगानुकूल शब्दों का चयन करता है। जैसे निराला ने ‘जूही की कली में ‘देख’ के स्थान पर ‘हेर’- “हेर प्यारे को सेज पास”, शय्या की जगह ‘सेज’ का प्रयोग कर कवि ने श्रृंगार भाव को अधिक सघन बना दिया है। जायसी ने ‘संदेश’ में ‘ड़ा’ प्रत्यय का प्रयोग संदेशड़ा’, रहीम ने ‘वा’ प्रत्यय लगाकर घइलवा, शब्द का निर्माण किया है। शैली वैज्ञानिक विशिष्ट शब्द रूपों के प्रयोग के आधार पर काव्य पंक्तियों की समीक्षा करता है।
3. रूप शैली विज्ञान – रूपों में चयन की गुंजाइश सबसे कम होती है। किया-करा में जो उपयुक्त होगा कवि उसे ही चुनेगा।
4. वाक्य शैली विज्ञान – कवि कविताओं में कर्म, कर्ता और क्रियाओं के प्रयोग क्रम में परिवर्तन लाकर सौन्दर्य उत्पन्न करता है। शैली वैज्ञानिक इसका विश्लेषण कर काव्य सौन्दर्य की समीक्षा करता है।
5. अर्थ शैली विज्ञान – कवि अर्थों से भी चमत्कार उत्पन्न करता है- जैसे
“दूर-दूर तक विस्तृत हिम था, स्तब्ध उसी के हृदय समान।” हिम से अधिक स्तब्ध क्या हो सकता है? यहाँ ‘स्तब्ध’ का प्रयोग ‘हिम’ के गुण दर्शन हेतु किया गया है।
इसी प्रकार ‘सादृश्यविधान’ जैसे – नमित मुख सांध्य कमल, प्रतीक जैसे माली, कलियाँ आदि, अलंकरण, बिम्ब, छन्द आदि के विशिष्ट प्रयोग द्वारा कवि कविता में चमत्कार उत्पन्न करता है। शैली वैज्ञानिक इन सभी का विश्लेषण कर काव्यगत सौन्दर्य की आलोचना करता है।
शैली विज्ञान की सीमाएं
भारत में shaili vigyan के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समीक्षक रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के अनुसार शैली विज्ञान साहित्य को समझने-समझाने की एक दृष्टि है जो शैली के साक्ष्य पर एक ओर साहित्यिक कृति की संरचना (स्ट्रक्चर) और गठन (टेक्सचर) पर प्रकाश डालती है तो दूसरी ओर कृति का विश्लेषण करते हुए उस अन्तर्निहित ‘साहित्यिकता’ का उद्घाटन करती है।
केदारनाथ सिंह की चर्चित कविता ‘इस अनागत का क्या करें’ की शैली वैज्ञानिक व्याख्या डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने की है। इस व्याख्या की परीक्षा करने के बाद डॉ. बच्चन सिंह की टिप्पणी है, “स्पष्ट है कि विवरणात्मक शैली वैज्ञानिक प्रणाली के आधार पर वाक्यों, उपवाक्यों, संज्ञा, सर्वनाम, पद, पदबंध आदि के माध्यम से कविता की जो परीक्षा की गई है वह उसकी शव परीक्षा बन जाती है। इसमें जिस व्याकरण की सहायता ली गई है यह कविता को छोटे-छोटे खंडों में काट तो देता है पर उसे संश्लेषित नहीं कर पाता। इस व्यवच्छेदन व्यापार से मूल्यांकन का सम्बन्ध निःशेष (समाप्त) हो जाता है।”
डॉ. बच्चन सिंह की उक्त टिप्पणी शैली वैज्ञानिक समीक्षा की सीमाओं को रेखांकित कर देती है।
फिलहाल, इस प्रकरण पर डॉ. रामचन्द्र तिवारी की टिप्पणी पर्याप्त है, “वस्तुतः प्रश्न सिद्धान्त का नहीं, व्यवहार का है और निष्कर्ष यह है कि व्यवहार के धरातल पर हिंदी में शैलीवैज्ञानिक आलोचना अभी अपनी मूल्यवत्ता प्रमाणित नहीं कर सकी है।”
फिलहाल, कृति केन्द्रित होने के नाते यह समीक्षा पद्धति रचना की विशेषताओं का अधिक अच्छी तरह मूल्यांकन कर सकती है किन्तु इसी के साथ यह कमी भी जुड़ जाती है कि इस पद्धति में रचना के सामाजिक तथा नैतिक मूल्य पूरी तरह उपेक्षित रह जाते हैं।
कविता के सौन्दर्य को पहचानने के लिए भाषिक अध्ययन कुछ सीमा तक सहायक हो सकता है, परन्तु उपन्यास, नाटक आदि का भाषिक अध्ययन इनके सौन्दर्य को उद्घाटित करने में अक्षम है।
निष्कर्ष
डॉ. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव की पुस्तक “शैली विज्ञान और आलोचना की नयी भूमिका” एक आन्दोलन के रूप में उभर कर आयी और पहली बार साहित्य को साहियेत्तर आयामों से अलग देखने की प्रवृत्ति उभरी ।
डॉ. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने शैली विज्ञान के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन इस प्रकार किया है – शैली विज्ञान साहित्यिक आलोचना का सिद्धान्त भी है और प्रणाली भी। सिद्धान्त के रूप में उसकी यह प्रमुख मान्यता है कि साहित्य ‘शाब्दिक कला’ (verbal art) है और कृति के रूप में साहित्यिक रचना, भाषा की अपनी सीमा में बंधी एक स्वनिष्ठ (Autonomous) इकाई है ।
साहित्यिक कृति भाषा को न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम बनाती है, अपितु स्वयं भाषा के भीतर ही अपना जन्म धारण करती है। शैली विज्ञान के अन्तर्गत भाषा का अध्ययन एक कला के रूप में किया जाता है। शैली विज्ञान को साहित्यिक मूल्यांकन में भी बड़ा स्थान मिल चुका है।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि :
- 1. यह सर्जनात्मक समीक्षा का नया आयाम है।
- 2. शैली विज्ञान को रीति विज्ञान के नाम से भी अभिहित करने का प्रयास हुआ।
- 3. शैली विज्ञान साहित्य के भाषिक विधान का रूपात्मक अध्ययन है।
- 4. शैली विज्ञान साहित्य भाषा के साभिप्राय अध्ययन का विज्ञान है।
- 5. शैली विज्ञान का एक सांख्यकीय आधार भी है।
- 6. Shaili Vigyan साहित्य को समझने की एक दृष्टि है।
- 7. यह विधा कृति में अन्तर्निहित साहित्यिकता का उद्घाटन करती है।
- 8. यह भाषा की प्रकृति एवं संरचना को स्पष्ट करने में सक्षम है।
- 9. यह सर्वथा नूतन आलोचना विधा किसी कृति की, उसके हर कोण से समीक्षा करने में सक्षम है।

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