समास के माध्यम से भी शब्दों का निर्माण होता है। समास का शाब्दिक अर्थ है संक्षेप। समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है ।
1.देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
2.राम और लक्ष्मण = राम-लक्ष्मण
3. रसोई के लिए घर = रसोई घर
समास का अर्थ : ‘समास’ का शाब्दिक अर्थ है – छोटा करना या संक्षिप्त करना। जैसे- गंगा का जल = गंगाजल, जेब के लिए खर्च = जेबखर्च।
अतः हम कह सकते हैं- दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर, संक्षिप्त कर नया शब्द बनाने की प्रक्रिया को समास कहते हैं।
इस प्रक्रिया द्वारा जो नए शब्द बनते हैं, वे समस्त-पद या सामासिक पद कहलाते हैं। समस्त पद का पहला पद पूर्वपद तथा दूसरा पद उत्तरपद कहलाता है।
समास-विग्रह : समस्त पद को पुनः पहले की स्थिति में लाने की प्रक्रिया को ‘समास-विग्रह’ कहा जाता है। अर्थात् समस्त-पद या सामासिक पद के सभी पदों को अलग-अलग किए जाने की प्रक्रिया समास-विग्रह कहलाती है।
नोट : समास रचना में प्रायः दो पद होते हैं । पहले को पूर्व पद और दूसरे को उत्तर पद कहते हैं ।
जैसे : ‘राजपुत्र’ में पूर्व पद ‘राज’ और उत्तर पद ‘पुत्र’ है ।
समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं । जैसे – राजा का पुत्र = राजपुत्र। यहाँ ‘का’ विभक्ति लुप्त हो गई ।
इसके अलावा कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है । जैसे – काठ की पुतली = कठपुतली (काठ के ‘का’ का ‘क’ बन जाना। घोड़े पर सवार = घुड़सवार (घोड़े के ‘घो’ का ‘घु’ बन जाना । )
इस पूरी प्रक्रिया को इस उदाहरण से भी समझ सकते हैं :
घोड़े पर सवार = घुड़सवार (समस्त-पद या सामासिक पद)
घोड़ा – पूर्वपद (पहला पद)
सवार – उत्तरपद (दूसरा पद)
‘घुड़सवार’ का समास- विग्रह होगा – घोड़े पर सवार
समास के भेद (Kinds of Compound)
समास के छह मुख्य भेद माने जाते हैं-
1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
2. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
3. कर्मधारय समास (Appositional Compound)
4. द्विगु समास (Numeral Compound)
5. द्वंद्व समास (Copulative Compound)
6. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण :
पूर्वपद प्रधान : अव्ययीभाव
उत्तरपद प्रधान : तत्पुरुष, कर्मधारय व द्विगु
दोनों पद प्रधान : द्वंद्व
दोनों पद अप्रधान : बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)
अब हम इनका विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे ।
अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय हो तथा वही प्रधान भी हो और समस्त पद भी अव्यय का काम करे, वह अव्ययीभाव समास कहलाता है।
उदाहरण –
पूर्वपद-अव्यय | + उत्तर पद | समस्त-पद | समास-विग्रह |
आ | + जीवन | आजीवन | जीवनभर |
आ | + जन्म | आजन्म | जन्म से लेकर |
यथा | + संभव | यथासंभव | जैसा संभव हो |
यथा | + शक्ति | यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
आ | + जन्म | आजन्म | जन्म से लेकर |
प्रति | + दिन | प्रतिदिन | दिन-दिन या प्रत्येक दिन |
भर | + पेट | भरपेट | पेट भरकर |
तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
जिस समास में दूसरा पद (उत्तरपद) प्रधान हो, वह तत्पुरुष समास होता है। इसमें समस्त-पद बनाते समय कारक-चिह्नों (परसर्गों/विभक्तियों) का लोप हो जाता है।
उदाहरण-
ग्रामगत – ग्राम को गत | कर्म तत्पुरुष |
यशप्राप्त – यश को प्राप्त | कर्म तत्पुरुष |
रेखांकित – रेखा से अंकित | करण तत्पुरुष |
तुलसीकृत- तुलसी द्वारा कृत | करण तत्पुरुष |
परीक्षा केंद्र – परीक्षा के लिए केंद्र | संप्रदान तत्पुरुष |
देशभक्ति – देश के लिए भक्ति | संप्रदान तत्पुरुष |
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट | अपादान तत्पुरुष |
जन्मांध- जन्म से अंधा | अपादान तत्पुरुष |
गंगाजल – गंगा का जल | संबंध तत्पुरुष |
राजकुमार- राजा का कुमार | संबंध तत्पुरुष |
वनवास- वन में वास | अधिकरण तत्पुरुष |
घुड़सवार- घोड़े पर सवार | अधिकरण तत्पुरुष |
तत्पुरूष समास के भेद
विभक्तियों के नाम के अनुसार इसके छह भेद हैं
कर्म तत्पुरूष (द्वितीया तत्पुरुष)
इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो जाता है। जैसे :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
गगन को चूमने वाला | गगनचुंबी |
यश को प्राप्त | यशप्राप्त |
रथ को चलाने वाला | रथचालक |
करण तत्पुरूष (तृतीया तत्पुरूष)
इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है। जैसे :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
करुणा से पूर्ण | करुणापूर्ण |
शोक से ग्रस्त | शोकग्रस्त |
मद से अंधा | मदांध |
पद से दलित | पददलित |
सूर द्वारा रचित | सूररचित |
संप्रदान तत्पुरूष (चतुर्थी तत्पुरूष)
इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ का लोप हो जाता है। जैसे :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
प्रयोग के लिए शाला | प्रयोगशाला |
देश के लिए भक्ति | देशभक्ति |
गौ के लिए शाला | गौशाला |
अपादान तत्पुरूष (पंचमी तत्पुरूष)
इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ (अलग होने का भाव) का लोप हो जाता है। जैसे :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
धन से हीन | धनहीन |
पथ से भ्रष्ट | पथभ्रष्ट |
गुण से हीन | गुणहीन |
संबंध तत्पुरूष (षष्ठी तत्पुरूष)
: इसमें संबंध कारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’ ‘की’ लुप्त हो जाती है। जैसे :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
राजा का पुत्र | राजपुत्र |
पर के अधीन | पराधीन |
देश की रक्षा | देशरक्षा |
अधिकरण तत्पुरूष (सप्तमी तत्पुरूष)
इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’, ‘पर’ लुप्त हो जाती है। जैसे :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
शोक में मग्न | शोकमग्न |
पुरुषों में उत्तम | पुरुषोत्तम |
आप पर बीती | आपबीती |
कर्मधारय समास (Appositional Compound)
इस समास के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध होता है।
विशेषण : विशेषता बताने वाला शब्द।
विशेष्य: विशेषण द्वारा सूचित किया जाने वाला शब्द या पद ।
जैसे : नीलकमल में ‘नील’ विशेषण है और ‘कमल’ विशेष्य ।
उपमान : वह वस्तु या व्यक्ति जिससे उपमा दी जाए ।
उपमेय : जिसकी किसी वस्तु से उपमा दी जाए ।
जैसे : चरणकमल में ‘कमल’ उपमान है और ‘चरण’ उपमेय ।
पहचान : समास विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के समान’, ‘रूपी’ आदि आते हैं ।
उदाहरण-
समास-विग्रह | समस्त-पद | |
नीले रंग का कमल | नीलकमल | (विशेषण-विशेष्य) |
महान आत्मा | महात्मा | (विशेषण-विशेष्य) |
चंद्रमा के समान मुख | चंद्रमुख | (उपमान-उपमेय) |
चरण रूपी कमल | चरणकमल | (उपमान-उपमेय) |
मुख रूपी चंद्र | मुखचंद्र | (उपमान-उपमेय) |
विद्या रूपी धन | विद्याधन | (उपमान-उपमेय) |
नीला है जो कंठ | नीलकंठ | (विशेषण-विशेष्य) |
द्विगु समास (Numeral Compound)
जिस समस्त-पद का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है, उसे द्विगु समास कहते हैं।
उदाहरण :
समास-विग्रह | समस्त-पद |
चार मासों का समूह | चौमासा |
पाँच वटों का समूह | पंचवटी |
तीन भुजाओं वाली आकृति | त्रिभुज |
तीन फलों का समूह | त्रिफला |
नौ ग्रहों का समूह | नवग्रह |
तीन रत्नों का समूह | त्रिरत्न |
सात दिनों का समूह | सप्ताह |
द्वंद्व समास (Copulative Compound)
जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान होते हैं, वहाँ द्वंद्व समास होता है। दोनों पद योजक-चिह्न (-) अर्थात् (Hyphen) द्वारा जुड़े होते हैं। इसका समास विग्रह करने पर ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ लगता है ।
उदाहरण-
समास-विग्रह | समस्त-पद |
सुख और दुख | सुख-दुख |
माता और पिता | माता-पिता |
गुण और दोष | गुण-दोष |
गंगा और यमुना | गंगा-यमुना |
पाप और पुण्य | पाप-पुण्य |
बच्चे एवं बूढ़े | बच्चे-बूढ़े |
दाल और रोटी | दाल-रोटी |
ऊँच या नीच | ऊँच-नीच |
बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
जिस समस्त-पद का अर्थ उसके दोनों पदों के अर्थ से अलग निकले, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। जैसे – ‘नीलकंठ’, ‘नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिलकर एक तीसरे पद ‘शिव’ की ओर संकेत किया है, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है ;
उदाहरण-
समस्त-पद | विग्रह |
नीलकंठ | नीला कंठ है जिसका अर्थात् शिव |
पीतांबर | पीत (पीले) हैं अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात् कृष्ण |
दशानन | दस हैं आनन (मुँह) जिसके अर्थात् रावण |
चक्रपाणि | चक्र है पाणि (हथेली) में जिसके अर्थात् कृष्ण |
चतुर्भुज | चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् विष्णु |
चतुर्मुख | चार मुख हैं जिसके अर्थात् ब्रह्मा |
लंबोदर | लंबा उदर है जिसका अर्थात् गणेश |
कर्मधारय समास और बहुव्रीहि समास में अंतर
1. कुछ सामासिक शब्द ऐसे हैं जो कर्मधारय और बहुव्रीहि दोनों में पाए जाते हैं। इनके अंतर को समझने के लिए इनके समास- विग्रह पर ध्यान देना होगा।
2. कर्मधारय समास में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का भाव होता है, जबकि बहुव्रीहि में कोई अन्य पद प्रधान होता है।
उदाहरण-
क. ‘कमलनयन’ में ‘कमल’ उपमान है तथा ‘नयन’ उपमेय है। यह कर्मधारय समास का उदाहरण है।
ख.’ पीताम्बर’ में विशेषण-विशेष्य का संबंध न लेकर किसी अन्य व्यक्ति (कृष्ण) की ओर संकेत है। इसका समास-विग्रह होगा-पीत हैं अंबर जिसके अर्थात् कृष्ण। यहाँ बहुव्रीहि समास है, न कि कर्मधारय।
निष्कर्ष
1. दो या दो से अधिक शब्दों का मेल कर संक्षिप्त रूप बनाने की विधि को समास कहा जाता है।
2. समस्त-पद या सामासिक पद के पदों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को समास विग्रह कहते हैं।
3. समास के छह भेद हैं – अव्ययीभाव, तत्पुरुष, द्विगु, द्वंद्व, कर्मधारय और बहुब्रीहि समास।

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