फैन्टेसी क्या है | Fantasy Kya Hai

आधुनिक काव्य-चिन्तन में कल्पना के साथ ‘फैन्टेसी’ की चर्चा भी बराबर होती है। इसका कारण यह है कि ‘फैन्टेसी’ भी एक प्रकार की कल्पना ही है। प्लेटो ने कल्पना के लिए ‘फैन्टेसिया’ शब्द प्रयोग किया था जिसका आधार ‘असत्य’ या ‘मिथ्या’ होता है।


 

 

     अतः
‘फैन्टेसी’  शब्द का निर्माण यूनानी शब्द ‘फैन्टेसिया’
से हुआ है जिसका अर्थ है “मनुष्य की वह क्षमता जो सम्भाव्य संसार की सर्जना करती
है।”

मानविकी
कोश में फैन्टेसी को स्वप्न चित्र मूलक साहित्य कहा गया है जिसमें असम्भाव्य
सम्भावनाओं को प्राथमिकता दी जाती है।

     फैन्टेसी
कल्पना पर आधारित होती है जिसे दिवास्वप्नात्मक (
daydreaming) अथवा दुःस्वप्नात्मक (nightmare) मानसिक बिम्ब (image) कहा जा सकता है। यह एक प्रकार की साहित्यिक तकनीक है जिसका सम्बन्ध
मनुष्य के स्वप्न और अवचेतन (
subconscious mind) में घटित होने वाली घटनाओं की ऐसी बिम्बावलियों (images) से है जो विघटित एवं बेतरतीब होती हैं।

फैन्टेसी
का प्रयोजन

 

फैन्टेसी के तीन प्रयोजन (purpose) हैं—

 1. मनोरंजन,

 2. यथार्थ से पलायन, और

3. दोषयुक्त मानव तथा दोषयुक्त संसार
के प्रति नवीन दृष्टिकोण से विचार करना।     बाबू
देवकीनन्दन खत्री ने अपने तिलस्मी उपन्यासों में जिस फैन्टेसी का प्रयोग किया है
उसका उद्देश्य मनोरंजन एवं यथार्थ से पलायन है जबकि मुक्तिबोध की कविताओं में
प्रयुक्त फैन्टेसी का उद्देश्य मानव एवं संसार के प्रति नवीन दृष्टिकोण है।

 

फैन्टेसी
के संबंध में ‘मुक्तिबोध’ के विचार

 

     प्रसिद्ध
कवि एवं समीक्षक
मुक्तिबोधके अनुसार, “फैन्टेसी में मन की निगूढ़ वृत्तियों का,
अनुभूत जीवन समस्याओं का, इच्छित विश्वासों और
इच्छित जीवन स्थितियों का प्रक्षेप होता है।” मुक्तिबोध की कविताओं-
ब्रह्मराक्षसएवं अँधेरे में में फैंटेसी का प्रयोग किया गया है।

{ निगूढ़ = रहस्यपूर्ण अर्थ वाला,
अत्यंत गुप्त; वृत्त = इतिहास, वृतांत, जैसे जीवनवृत्त;

प्रक्षेप = आगे की ओर जोर से फेंकना}

उपर्युक्त
कथन का विश्लेषण करने पर निम्नलिखित बातें सामने आती हैं:

(क) फैन्टेसी में मन के
निगूढ़ तत्त्व उद्भासित (प्रकाशित, प्रकट) होते हैं।

 (ख) अनुभूत जीवन समस्यायें प्रक्षेपित (projected) होती हैं।

(ग) इच्छित
जीवन-स्थितियाँ
, अर्थात् जैसी जीवन स्थितियों की हम कामना
करते हैं
, वे भी इसमें प्रक्षेपित होती हैं।

 

फैन्टेसी
के संबंध में फ्रायड, एडलर और जुंग के विचार

 

मनोविज्ञान
के क्षेत्र में फैन्टेसी का सामान्य अध्ययन सिगमंड फ्रायड (
Sigmund
Freud 1856-1939), अल्फ्रेड एडलर (Alfred Adler, 1870-1937) और कार्ल जुंग (Carl Jung, 1875-1961) जैसे विचारकों
ने किया है।

     सिगमंड
फ्रायड ने स्वप्नों के गंभीर अध्ययन द्वारा पहले पहल इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश
डाला तथा फैन्टेसी और विचारों के संबंध को स्पष्ट किया।
कवि और दिवा-स्वप्नविषय पर अपने लेख में फ्रायड ने
कहा है कि अतृप्त इच्छाएं फैन्टेसी की प्रेरक शक्तियां हैं तथा दिवा-स्वप्नों की
ओर इंगित करते हुए कहा कि कवि दिवा-स्वप्नों को जो कलात्मक रूप प्रदान करता है वह
भी इन्हीं अतृप्त इच्छाओं का ही परिणाम होता है
, जो माध्यम
रूप में प्रच्छन्न होता है।    

{दिवा-स्वप्न = अकर्मण्य एवं निराश
व्यक्ति का बैठे-बैठे हवाई किले बनाना
, डेड्रीम}

     फ्रायड
का विश्वास था कि दिवा-स्वप्नों के सचेत अध्ययन से मानव की आकांक्षाओं एवं
व्यक्तित्व के अन्य दूसरे पक्षों का भी उद्घाटन हो सकता है। अन्य मनोवैज्ञानिकों
ने भी फैन्टेसी को काल्पनिक चिंतन का ही एक रूप माना है
, जो वस्तु- जगत की परिस्थितियों से उतना निर्धारित नहीं होता जितना कि
व्यक्ति की इच्छाओं
, मूल प्रवृत्तियों और भावों के द्वारा।

     फ्रायड
के शिष्यों एडलर एवं जुंग ने फैन्टेसी के बारे में काफी चिंतन किया है। कार्ल जुंग
, फैन्टेसी को मुक्तसाहचर्य’ (free
association) का पर्याय मानते हैं। जैसा कि इस संज्ञा से स्पष्ट है
मुक्तसाहचर्य में मन को चिंतन के दबाव से मुक्त रखा जाता है। इस प्रकार यह
अवरोधहीन असंगत बिंबों का समुच्चय होता है। इसके विपरीत अभिप्रेरित (
Directed
feeling) पर विवेक का दबाव होता है जो उसे एक निश्चित दिशा में चलने
को बाध्य करता है।

     मनोविश्लेषण-शास्त्र
के अध्ययन ने सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह प्रस्तुत किया कि कविता का जन्म प्रकृति और
मनुष्य की जीवनेच्छा के बीच स्थित अंतर्विरोध से होता है। दूसरे शब्दों में
, कविता मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों और अनुभवों के तनाव का परिणाम होती हैं।
यह तनाव कवि को फैन्टेसी की एक ऐसी काल्पनिक दुनिया बनाने के लिए विवश करता है जो
वास्तविक दुनिया से एक निश्चित और सक्रिय (
functional) संबंध
रखता है। इस तरह फैन्टेसी का अर्थ केवल
कल्पनानहीं है वरन उसका एक निश्चित भौतिक आधार होता है, जहां
से वह जन्म लेती है और उसी पर प्रभाव भी डालती है।

     फैन्टेसी
में रचनाकार को कल्पना के माध्यम से रचना-संसार में विचरण करने की पूरी छूट होती
है। फैन्टेसी में यथार्थ कुछ इस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि यह एक विस्मय
उपस्थित करता है
, पाठकों को विचारों में
डूबने-उतराने की स्थिति में ला देता है। उसका बाह्य रूप कुछ अनगढ़ एवं अमूर्त सा
प्रतीत होता है किंतु आंतरिक रूप तर्कसंगत एवं कटु सत्यों से पूर्ण होता है।
फैन्टेसी में अतिप्राकृत तत्व का आकर्षण होता है जिससे पाठक या श्रोता का मनोरंजन
भी होता है। फैन्टेसी की रचना सरल सुगम नहीं
, बल्कि श्रम
साध्य होती है। उसमें असाधारण वैकल्पिक कौशल की आवश्यकता होती है और उसमें पात्रों
के व्यवहारों एवं क्रिया-कलापों के समानांतर ही भाषा
, प्रतीक
और बिंब भी असामान्य होते हैं जो दुरूह भी होते हैं
, किंतु
यदि वे अत्यधिक दुरूह नहीं हैं तो यह फैन्टेसी की रचना के लिए स्वस्थ गुण है।

     श्रेष्ठ
फैन्टेसी वही होती है जिसमें यथार्थ एवं फैन्टेसी से संबंधित विचारों का स्वस्थ
एवं सानुपातिक समन्वय दूध और पानी की तरह अलग नहीं किया जा सकता। यदि यथार्थ और
फैन्टेसी संबंधी विचार अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं तो फैन्टेसी उत्कृष्ट नहीं कही
जा सकती। फैन्टेसी का समापन प्रायः दुःखांत होता है।

 

फैन्टेसी
की मुख्य विशेषताएं

 

फैन्टेसी के सम्बन्ध में सामान्यतः
निम्नलिखित बातें मान्य हैं-

(क) फैन्टेसी’ भी एक तरह की कल्पना ही है किन्तु कवि की रचनात्मक कल्पना से
इसका स्वरूप भिन्न होता है। इसमें मनोबिम्बों को समन्वित
, संघटित
और परिवर्तित करके नवीन रचना की शक्ति नहीं होती।

(ख) फैन्टेसी में आने
वाली बिम्बावलियाँ बेतरतीब और विशृंखलित होती हैं। उनकी स्थिति स्वप्नबिम्बों जैसी
होती है।

(ग) फैन्टेसी में जीवन
का वास्तविक यथार्थ रूपायित नहीं हो पाता किन्तु टेकनीक के रूप में फैंटेसी का
प्रयोग करके जीवन-यथार्थ के बिम्ब प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

(घ) फैन्टेसी का सम्बन्ध
रचनाकार के अवचेतन मन से होता है इसलिए इसमें रचनाकार के मन के निगूढ़ तत्त्वों की
झलक मिल जाती है।

 

निष्कर्ष 

 

     फैन्टेसी’ मनोविज्ञान का शब्द है। इसका संबंध स्वप्न और अवचेतन मन में
घटित होने वाली घटनाओं की विघटित ओर बेतरतीब बिंबावलियों से है। साहित्य या काव्य
में यह एक टेकनीक के रूप में प्रयुक्त की जाती है।

     हिंदी-कवियों
में मुक्तिबोध ने फैन्टेसी का सर्वाधिक सहारा लिया है। कविता में यथार्थ की
निरंतरता
, संश्लिष्टता (जोड़, योग), विसंगति (असंगति), अंतर
एवं बाह्य जगत सभी को एक साथ समेटने के लिए कवि फैन्टेसी का सहारा लेता है और
मुक्तिबोध ने ऐसा किया है। मुक्तिबोध के ही शब्दों में “कवि की यह फैन्टेसी भाषा
को समृद्ध बना देती है
, उसमें नये अर्थ अनुषंग (गहन संबंध) भर
देती है
, शब्द को नये चित्र प्रदान करती है। इस प्रकार कवि
भाषा का निर्माण करता है
, विकास करता है, वह निस्संदेह महान कवि है।”ब्रह्मराक्षसमुक्तिबोध की यथार्थवादी दृष्टि से
प्रेरित एक महत्वपूर्ण कविता है जिसमें सुंदर फैन्टेसी विधान उपलब्ध है। इस कविता
में कवि कल्पना के माध्यम से एक अयथार्थ आदिम प्रतीक जनित बावड़ी का निर्माण करता
है जो कि परित्यक्ता है
, सूनी है, उसके
चारों ओर शाखाएं हैं
, लाल फूल हैं, घुग्घुओं
के घोंसले हैं
, घटाटोप अंधकार है। यह चित्रण भयावह कथ्य के
सम्प्रेषण की प्रतीकात्मक भूमिका है। सूनी बावड़ी के भीतर एक ब्रह्मराक्षस बैठा है
जो कल्पनाजनित है।

      ब्रह्मराक्षस एक मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी है जो
आत्ममुक्ति के लिए छटपटा रहा है। जीवन भर वह ज्ञानार्जन करता है किंतु ज्ञानकूप से
निकल नहीं पाता। अपने ज्ञान को व्यवहार में परिणत नहीं कर पाता । ब्रह्मराक्षस
असाधारण प्रतिभा का है। वह बेबीलोनी और वैदिक कथाओं
, छंद, मंत्र, थ्योरम एवं प्रमेय
तथा मार्क्स
, एंगेल्स, रसेल, हिडेगार, सार्त्र, गांधी आदि
सभी के सिद्धांतों को स्पष्ट करने में समर्थ है। वह बावड़ी में अपना गणित
जोड़ता-घटाता मर जाता है।

     इस
फैन्टेसी में एक ऐसे पात्र का निर्माण किया गया है जो मानव-जीवन की सामान्य
स्थितियों में नहीं पाया जाता और जहाँ पशु तथा मानव-जीवन का अंतर मिट गया है
, भौतिकशास्त्र की सीमाएं समाप्त हो गयी हैं। यह चित्रण बाह्य रूप से अमूर्त
और असंगत भले ही प्रतीत हो किंतु यह कटु सत्य है- “पिस गया वह भीतरी औ
बाहरी दो कठिन पाटों के बीच, ऐसी ट्रेजडी है नीच।”
इस फैन्टेसी में असाधारण भाषा
, प्रतीक-बिंब एवं अतिरंजित
कल्पना ही अद्भुत सत्य को प्रस्तुत करने में समर्थ है।
 

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