आई ए रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धान्त | I A Richards ka Sampreshan Siddhant
I A Richards ka Sampreshan Siddhant
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ये बिम्ब एक प्रकार से संचित अनुभूतियों के रूप में हमारे अवचेतन मन (subconscious mind) में सदा विद्यमान रहते हैं और समय-समय पर स्मृति एवं कल्पना की सहायता से पुनः हमारे चेतन स्तर पर उदित होकर हमें भाँति-भाँति के बोध प्रदान करते हैं। कवि या कलाकार इन्हीं बिम्बों को अपनी रचना में प्रस्तुत करता है, … Read more
पाश्चात्य काव्यशास्त्र के अंतर्गत आज हम rusi rupvad या rupvad को समझने का प्रयास करेंगे । इस सिद्धान्त को विस्तार से समझने के लिए आप नीचे का ये विडियो भी देख सकते हैं : ‘रूपवाद’ का उद्भव रूस (Russia) में हुआ इसलिए इसे रूसी रूपवाद भी कहा जाता है। रूस में रूपवादी समीक्षा का सूत्रपात 19वीं … Read more
पश्चिम में विधिवत् रूप से एक शास्त्र के रूप में साहित्य की आलोचना की शुरुवात सबसे पहले प्लेटो (427-347 ई.पू.) के माध्यम से हुई । उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जिसे एथेन्स (यूनान) का पतनकाल कहा जाता है। आज भी विद्वान प्लेटो द्वारा कविता पर लगाए गए आरोपों से जूझ रहे हैं और … Read more
मार्क्सवादी कला और साहित्य-चिन्तन मार्क्सवादी दर्शन से प्रभावित है। इसके दो प्रमुख आधार हैं- एक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और दूसरा ऐतिहासिक भौतिकवाद। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एक विकास का सिद्धान्त है जो क्रिया, प्रतिक्रिया और समन्वय के द्वारा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसका संबंध प्रकृति और जगत के नियमों की व्याख्या से है । ऐतिहासिक … Read more
हिंदी शब्द अभिजात्यवाद या आभिजात्यवाद अंग्रेजी शब्द क्लासिसिज्म [CLASSICISM] का पर्याय है। हिंदी में आभिजात्यवाद के अतिरिक्त शास्त्रवाद या श्रेण्यवाद आदि कई नाम इसके लिए प्रस्तावित किए गए हैं। आचार्य नलिनविलोचन शर्मा ने उसके लिए हिंदी में ‘श्रेण्यवाद‘ शब्द प्रस्तावित किया किन्तु यह शब्द प्रचलन में नहीं आ सका। आभिजात्यवाद या क्लासिसिज्म की परिभाषा … Read more
‘मिथक’ शब्द अंग्रेजी के ‘मिथ’ (Myth) और ग्रीक शब्द ‘माइथोस’ शब्द पर आधारित है। ‘मिथ’ (Myth) का प्रयोग ‘कल्पित कथा’ या ‘पौराणिक कथा’ के लिए किया जाता है। अरस्तू ने अपने ग्रन्थ ‘पोयटिक्स’ में ‘मिथक’ शब्द का प्रयोग ‘मनगढ़ंत कथा’ के लिए किया है। मिथक परम्परागत अनुश्रुत (परंपरा से प्राप्त ज्ञान) कथा है जो किसी अतिमानवीय प्राणी या घटना से सम्बन्धित होती है, जो … Read more
पश्चिम में विधिवत् रूप से एक शास्त्र के रूप में साहित्य की आलोचना की शुरुवात सबसे पहले प्लेटो (427-347 ई.पू.) के माध्यम से हुई । उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जिसे एथेन्स (यूनान) का पतनकाल कहा जाता है। युद्ध में पराजित एथेन्स अनेक कठिनाइयों से गुज़रते हुए शक्तिहीन हो चुका था। … Read more
संरचनावाद अंग्रेजी शब्द (Structuralism) का हिंदी पर्याय है । संरचनावाद पाश्चात्य समीक्षा जगत से हिंदी में आया। यह 1960 के दशक के फ्रांस में विकसित बौद्धिक विश्लेषण एवं चिंतन की वह पद्धति है जिसे विश्व स्तर पर भाषाविदों, साहित्य समीक्षकों, दार्शनिकों, मनोविज्ञान शास्त्रियों तथा नृविज्ञान शास्त्रियों (anthropologist) का उत्साहवर्द्धक समर्थन मिला । तो चलिए आज हम sanrachanavad kya hai को विस्तार … Read more
पाश्चात्य काव्य-चिंतन की परंपरा का विकास 5 वीं सदी ईस्वी पूर्व से माना जाता है। पतंतु पाश्चात्य आलोचना में भौतिक सिद्धान्तों का सर्वप्रथम प्रतिपादन प्लेटो द्वारा ही हुआ । इसी काल में पाश्चात्य अर्थात् ग्रीक आलोचना का क्रमबद्ध स्वरूप देखने को मिलता है । इसके पहले कतिपय यूनानी साहित्यकारों (होमर, पिण्डार, गार्जियस, अरिस्टोफनीस आदि) की कृतियों … Read more
पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में यूनानी विद्वान अरस्तू (384 ई.पू.-322 ई.पू.) का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है । वे एक ओर तो प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो के शिष्य थे तो दूसरी ओर विश्व-विजेता सिकंदर महान के गुरु होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है। उन्होंने अपने जीवन में लगभग चार सौ ग्रन्थों की रचना की । … Read more