रूसी रूपवाद | rusi rupvad | रूपवाद | rupvad | pashchatya kavyashastra | Russian Formalism | Formalism

rusi rupvad

पाश्चात्य काव्यशास्त्र के अंतर्गत आज हम rusi rupvad या rupvad को समझने का प्रयास करेंगे । इस सिद्धान्त को विस्तार से समझने के लिए आप नीचे का ये विडियो भी देख सकते हैं :  ‘रूपवाद’ का उद्भव रूस (Russia) में हुआ इसलिए इसे रूसी रूपवाद भी कहा जाता है। रूस में रूपवादी समीक्षा का सूत्रपात 19वीं … Read more

अतियथार्थवाद क्या है | Ati Yatharthavad Kya Hai | अतियथार्थवाद | Surrealism | Surrealism kya hai

Ati Yatharthavad Kya Hai

‘अतियथार्थवाद’ अंग्रेजी के सरियलिज़्म (Surrealism) का हिंदी पर्याय है। साहित्य और कला के क्षेत्र का यह एक ऐसा आंदोलन है जिसका जन्म प्रथम विश्वयुद्धोत्तर फ्रांस में हुआ। नाम से यथार्थवाद के चरम रूप का भ्रम पैदा करने वाला यह ‘वाद’ यथार्थवाद से पूर्णतः भिन्न है और एक तरह से स्वच्छंदतावाद की ही अंतिम परिणति है। … Read more

शब्द और पद में अंतर | Shabd aur Pad men Antar | Shabd aur Pad men Kya Antar hai

Shabd aur Pad men Antar

सामान्य बोलचाल में शब्द और पद को एक ही मान लिया जाता है । परंतु जब हम भाषाविज्ञान की दृष्टि से दोनों का अध्ययन करते हैं तो दोनों के बीच का अंतर पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है । शब्द और पद में अंतर (shabd aur pad men antar) को भली-भाँति समझने के लिए … Read more

साहित्य का उद्देश्य मुंशी प्रेमचंद का सार | sahitya ka uddeshya munshi premchand ka sar

sahitya ka uddeshya munshi premchand

यह निबंध प्रेमचंद के एक भाषण का लिखित रूप है। प्रेमचंद ने यह भाषण लखनऊ में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना के अवसर पर अध्यक्ष के रूप में दिया था। इसमें हिंदी और उर्दू के अनेक लेखक शामिल हुए। यह सम्मेलन सन् 1936 में आयोजित हुआ था। इसे प्रेमचंद ने ‘साहित्य के इतिहास की एक … Read more

नीतिकाव्य | Niti Kavya | नीति काव्य किसे कहते हैं | Niti Kavya Kise Kahte Hain

Niti Kavya

नीतिकाव्य जीवन-व्यवहार को सुगम बनाने का आधार है। नीतिकाव्य सृजित करने में व्यावहारिक अनुभवों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। व्यक्ति इन अनुभवों को स्वयं के क्रिया-कलापों से तथा दूसरों के द्वारा अर्जित एवं कहे गए मन्तव्यों से ही अर्जित करता है।    स्वयं द्वारा अर्जित अनुभवों से यद्यपि व्यक्ति आत्मनिर्भर और संघर्षशील बनता है, तथापि … Read more

प्लेटो का प्रत्ययवाद या प्लेटो का प्रत्यय सिद्धान्त | plato ka pratyayvad ya plato ka pratyay siddhant | plato ka pratyay siddhant | plato ka pratyayvad

plato ka pratyay siddhant, plato ka pratyayvad

पश्चिम में विधिवत् रूप से एक शास्त्र के रूप में साहित्य की आलोचना की शुरुवात सबसे पहले प्लेटो (427-347 ई.पू.) के माध्यम से हुई । उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जिसे एथेन्स (यूनान) का पतनकाल कहा जाता है। आज भी विद्वान प्लेटो द्वारा कविता पर लगाए गए आरोपों से जूझ रहे हैं और … Read more

मार्क्सवादी साहित्य और कला-चिन्तन | Marxvadi Sahitya aur Kala Chintan | Marxvadi Sahitya Chintan

Marxvadi Sahitya aur Kala Chintan

मार्क्सवादी कला और साहित्य-चिन्तन मार्क्सवादी दर्शन से प्रभावित है। इसके दो प्रमुख आधार हैं- एक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और दूसरा ऐतिहासिक भौतिकवाद।   द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एक विकास का सिद्धान्त है जो क्रिया, प्रतिक्रिया और समन्वय के द्वारा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसका संबंध प्रकृति और जगत के नियमों की व्याख्या से है ।  ऐतिहासिक … Read more

अभिजात्यवाद क्या है | आभिजात्यवाद क्या है | Abhijatyavad Kya Hai | Classicism Kya Hai

abhijatyavad kya hai

हिंदी शब्द अभिजात्यवाद या आभिजात्यवाद अंग्रेजी शब्द क्लासिसिज्म [CLASSICISM] का पर्याय है। हिंदी में आभिजात्यवाद के अतिरिक्त शास्त्रवाद या श्रेण्यवाद आदि कई नाम इसके लिए प्रस्तावित किए गए हैं।   आचार्य नलिनविलोचन शर्मा ने उसके लिए हिंदी  में ‘श्रेण्यवाद‘ शब्द प्रस्तावित किया किन्तु यह  शब्द प्रचलन में नहीं आ सका।   आभिजात्यवाद या क्लासिसिज्म की … Read more

भारतेन्दुपूर्व हिंदी आलोचना | Bhartendupurva Hindi Alochana

bhartendupurva hindi alochana

भारतेन्दु  से पूर्व भक्ति और रीति युग में आलोचना के क्षेत्र में प्रयास हुए हैं। भक्ति काल में भक्ति का प्रभाव इतना प्रबल है कि वहाँ अलग से काव्य-सिद्धांतों की चर्चा प्रायः नहीं हुई है। भक्त कवियों के लिए काव्य रचना ईश्वर भक्ति का साधन है इसलिए जहाँ ईश्वर है वहाँ उत्तम काव्य भी है। … Read more

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि | Acharya Hazariprasad Dwivedi Ki Alochana Drishti

acharya hazari prasad dwivedi ki alochana drishti

बलिया जिला (उ.प्र.) के ‘आरत दुबे का छपरा’ नामक गाँव में जन्मे, काशी में शिक्षित हुए तथा शान्तिनिकेतन, चंडीगढ़ और काशी में अध्यापन करने वाले आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी (19.8.1907-19.5.1979) मूलतः साहित्येतिहासकार, आलोचक और अनुसन्धानकर्ता हैं।  उन्होंने साहित्य को सांस्कृतिक चेतना के स्तर पर देखा है। इसी दृष्टि से उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण आलोचना ग्रंथ लिखे हैं … Read more

कबीर का समाज दर्शन | Kabir Ka Samaj Darshan | कबीर एक समाज सुधारक के रूप में | Kabir Ek Samaj Sudharak Ke Rup Men | Kabir Ki Samajik Chetna

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार भक्तिकाल (पूर्व-मध्यकाल) का समय संवत् 1375 से 1700 (अर्थात् सन् 1318 ई. से 1643 ई.) तक है ।   उन्होंने भक्तिकाल का विभाजन निम्नानुसार किया है, जो आज सर्वमान्य है : भक्तिकाल का काल विभाजन : 1. निर्गुण धारा : (क) ज्ञानाश्रयी शाखा (संत काव्यधारा) – इसके प्रतिनिधि कवि कबीर हैं … Read more

मिथक | मिथक क्या है | Mithak | Mithak Kya Hai | Myth | Myth Kya hai

  ‘मिथक’ शब्द अंग्रेजी के ‘मिथ’ (Myth) और ग्रीक शब्द ‘माइथोस’ शब्द पर आधारित है। ‘मिथ’ (Myth) का प्रयोग ‘कल्पित कथा’ या ‘पौराणिक कथा’ के लिए किया जाता है।  अरस्तू ने अपने ग्रन्थ ‘पोयटिक्स’ में ‘मिथक’ शब्द का प्रयोग ‘मनगढ़ंत कथा’ के लिए किया है। मिथक परम्परागत अनुश्रुत (परंपरा से प्राप्त ज्ञान) कथा है जो किसी अतिमानवीय प्राणी या घटना से सम्बन्धित होती है, जो … Read more

वाक्य के भेद | वाक्य के प्रकार | Vakya ke Bhed | Vakya ke Prakar

शब्दों का अपना अर्थ होता है, लेकिन इनको बिना किसी क्रम के अलग-अलग बोलने से वक्ता का पूरा अभिप्राय स्पष्ट नहीं हो पाता। जबकि शब्दों को निश्चित क्रम और स्वाभाविक गति से बोलने पर वक्ता का अभिप्राय स्पष्ट हो जाता है।   जैसे – नदी के किनारे-किनारे एक गाय जा रही थी। अतः हम कह सकते … Read more

समास और उसके प्रकार | Samas Aur Uske Prakar

Samas aur uske prakar

समास के माध्यम से भी शब्दों का निर्माण होता है। समास का शाब्दिक अर्थ है संक्षेप। समास प्रक्रिया में शब्दों का  संक्षिप्तीकरण किया जाता है । 1.देश के लिए भक्ति  = देशभक्ति 2.राम और लक्ष्मण = राम-लक्ष्मण 3. रसोई के लिए घर = रसोई घर समास का अर्थ : ‘समास’ का शाब्दिक अर्थ है – … Read more

पृथ्वीराज रासो के रेवा तट सर्ग का कथानक | Prithviraj Raso Ke Reva Tat ka Kathanak

prithviraj raso ke reva tat ka kathanak

चन्दवरदाई दिल्ली के अंतिम सम्राट महाराज पृथ्वीराज चौहान के सामंत और राजकवि के रूप में प्रसिद्ध है । माना तो यह भी जाता है कि चन्द केवल पृथ्वीराज के राजकवि या सामंत ही नहीं बल्कि उनके परम मित्र भी थे। वे षडभाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंदशास्त्र, ज्योतिष, पुराण आदि अनेक विधाओं में पारंगत थे । … Read more

अलंकार सम्प्रदाय |Alankar Sampraday | Alankar Siddhant | Bhartiya Kavya Shastra

Alankar Sampraday

   अलंकार काव्य का वह तत्व है जो उसे अलंकृत करता है । अर्थात् अलंकार काव्य को सुंदर बनाता है । सर्वप्रथम आचार्य भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में चार अलंकारों – उपमा, रूपक, दीपक और यमक का उल्लेख मिलता है ।  किन्तु अभी अलंकार-सिद्धान्त का जन्म नहीं हुआ था ।   संस्कृत काव्यशास्त्र में कालक्रम की … Read more

प्रतीक | प्रतीक क्या है | Pratik | Pratik Kya hai

Pratik Kya hai

प्रतीक किसी वस्तु विशेष या भाव समूहों का एक ऐसा संकेत है जो अगोचर एवं अतीन्द्रिय है, जिसका संपूर्ण रूप में मस्तिष्क में अनुभव किया जा सकता है। अर्थात प्रतीक ऐसा शब्द चिह्न है जो किसी वस्तु का बोध कराता है। वस्तुतः प्रतीक किसी सूक्ष्म भाव, विचार या अगोचर तत्व को साकार करने के लिए … Read more

साहित्य का उद्देश्य | Sahitya ka Uddeshya | Sahitya ka Prayojan | साहित्य का प्रयोजन

Sahitya ka Uddeshya

साहित्य शब्द और अर्थ के समन्वित सौंदर्य से निर्मित ऐसी लोकमंगलकारी रचना है जो रचनाकार के भावों, विचारों और आदर्शों को पाठक या समाज तक सम्प्रेषित करती है।  विद्वानों के अनुसार ‘साहित्य’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है = सहित + यत् प्रत्यय । अर्थात साहित्य का अर्थ है – साथ होने का भाव या सहभाव … Read more

यथार्थवाद क्या है | Yatharthvad Kya Hai| Realism Kya Hai

Yatharthvad Kya Hai

हिंदी में यथार्थवाद अंग्रेजी के रियलिज्म (Realism) के अनुवाद के रूप में प्रयुक्त होता है । यथार्थ का अर्थ है यथा + अर्थ यानी जैसा है वैसा अर्थ। किंतु इसका पारिभाषिक अर्थ समझने के लिए इतिहास और दर्शन के क्षेत्र में जाना पड़ेगा । यथार्थवाद मूलतः दर्शन के क्षेत्र का शब्द है, जहाँ  से साहित्य व … Read more

फैन्टेसी क्या है | Fantasy Kya Hai

Fantasy Kya Hai

आधुनिक काव्य-चिन्तन में कल्पना के साथ ‘फैन्टेसी’ की चर्चा भी बराबर होती है। इसका कारण यह है कि ‘फैन्टेसी’ भी एक प्रकार की कल्पना ही है। प्लेटो ने कल्पना के लिए ‘फैन्टेसिया’ शब्द प्रयोग किया था जिसका आधार ‘असत्य’ या ‘मिथ्या’ होता है।  अतः ‘फैन्टेसी’  शब्द का निर्माण यूनानी शब्द ‘फैन्टेसिया’ से हुआ है जिसका … Read more

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